रोटी कमाने की चाह में घर से बहुत दूर निकल आया हूं , अपने पीछे ना चाह कर भी अपना घर और अपनी मां को छोड़ आया हूं। अब तो मुझे यह रात भी हर पल एहसास दिलाती है, कि चैन की नींद तो बस मुझे मेरी मां की गोद में आती है, जब वह मुझे प्यार से ममता का आंचल ओढ़ाती है, कभी बहका के तो कभी डरा कर भी सुलाती है, और अगर मैं ज्यादा डर जाऊं तो फिर वही मुझे सीने से भी लगाती है, क्योंकि वो मां है जनाब, जिसकी पनाह मुझे जन्नत का एहसास दिलाती है। सीने में लाखों दर्द छुपाए वह बस यूं ही मुस्कुराती है, भूल जाती है वह खुद की परेशानी जब बात मेरी खुशी की आती है, खुद की कभी ना फिक्र किए बस फिक्र मेरी उसे सताती है, मेरी हर एक मुस्कान के लिए वह कुछ भी कर गुज़र जाती है, जब भी मुझे भूख लगी हो तो वह चैन से कहां रह पाती है, अगर आधी रात को भी कहूं तो मेरे लिए वह भाग के जाती है, क्योंकि वो मां है जनाब, खुद भूखे रहकर भी वह मेरी भूख मिटाती है। पर आज घर से दूर होके मुझे तेरी बहुत याद आई है, क्योंकि मेरे साथ अब ना मेरी परछाई है, मेरे जीवन में अब मेरे साथ सिर्फ मेरी तन्हाई है, बहुत अफसोस है कि तेरी एहमियत अब जाके मुझे समझ आई है। अब तो मेरी बस एक ही ख्वाहिश है कि मेरा घर मुझे फिर से बुला लाए, कि वह पल जो बीत गया है वह मेरी जिंदगी में फिर से लौट आए, जिसमें मैं अपनी मां को फिर कभी ना अब सताऊं, थोड़ा झूठा ही सही मगर दिल का सच्चा हो जाऊं, एक बार फिर से मैं अपनी मां का अच्छा बच्चा हो जाऊं। पर ना जाने वह पल फिर कब लौट के आएगा , जब मेरा घर मुझे फिर से बुलाएगा , या यूं ही मुझे पल-पल तड़पाएगा , ना जाने वह पल फिर कब लौट के आएगा। -Nishant Dwivedi ✍️ घर और मां