यादों की अल्मारी को खोला तो देखा मेरा बचपन पड़ा था एक एल्बम में।पन्ने पलटे तो मिले कुछ दोस्त पुराने जो ना जाने कहा गुम हो गये थे। उस दौर मे लौट गया मे कुछ देर के लिये जहाँ जिन्दगी एक रोमांच थी। हम बेफिक्र थे, अल्मस्त थे और बेवजह खुश रहते थे। वो मेरे स्कूल की बिल्डिंग वो क्लास रूम वो दोस्त वो इंटरवल की घंटी सब मेरी आंखो के सामने तैरने लगा। अगले पन्नो में कॉलेज के लम्हे थे। साइकिल से बाइक का सफर, दोस्तो के घर रुकना और रात रात भर गप्पों का दौर। पहली बार गर्लफ्रेंड बनाना और चोरी छिपे घुमने जाना। तब पैसा नही था जेब में पर हम अमीर हुआ करते थे। तब ना जाने क्यों बड़े होने की जल्दी थी। आज दिल चाहता है कि काश हम फिर से बच्चे बन जाते। #दिल_का_कोना