"प्रेम की पराकाष्ठा" ----------------------- शुरु-शुरु में हर प्रश्न का उत्तर आता था मिनटों में सीधे साधे किसी प्रश्न का अब उत्तर आता है घंटों में और किसी से चैटिंग चलती लगता हूं उबाऊ मैं मत इतना इग्नोर करो कि सूली पर चढ़ जाऊं मैं आएगा जवाब कुछ न कुछ आस जगाए बैठा रहता घंटो से प्रतिक्रिया की आस लगाए बैठा रहता दिन रात तुम्हें ही याद करूं तुम्हीं में खो जाऊं मैं मत इतना इग्नोर करो कि सूली पर चढ़ जाऊं मैं पहले तुमसे चैटिंग करता भोजन करता बाद में तबीयत बिगड़ी धीरे धीरे वाह वाह और दाद में कितना तुमसे प्यार हूं करता कैसे यार समझाऊं मैं मत इतना इग्नोर करो कि सूली पर चढ़ जाऊं मैं ©Narendra Sonkar *प्रेम की पराकाष्ठा*