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हमसफर की चाहत ने मंजिल ही खो दी हम उन्हें ढुं

हमसफर की चाहत ने
मंजिल ही खो दी

    हम उन्हें ढुंढते रहे   
और वो मंजिल को पा गये

                  -Kumar Dilip कविता के अंश
हमसफर की चाहत ने
मंजिल ही खो दी

    हम उन्हें ढुंढते रहे   
और वो मंजिल को पा गये

                  -Kumar Dilip कविता के अंश

कविता के अंश