शाम-ए-ग़म पशेमां और, सुब्'ह चश्म-तर होगी, ये न सोचा था ख़ुशियां, इतनी मुख़्तसर होंगी! आज का भी दिन मेरा, बस ये सोचते गुज़रा, ज़िंदगी बिना तेरे, किस तरह बसर होगी? हिज्र की ये रातें ही, अब मेरा मुक़द्दर हैं, ख़्वाब में भी ना आए, और सख़्ततर होंगी। ज़ीस्त की ये तन्हाई, ज़ौजियत में है मेरे, पास हो न हो कोई, साथ ये मगर होगी। शर्त ये है बस मेरी आंख बंद हो जाए, मुझपे फिर मेहरबां ये दुनिया किस क़दर होगी! #yqaliem #sham_e_gham #hijr #zeest_ki_tanhai #zaujiyat #chashmtar Baher: 212 1222 212 1222 हिज्र : separation चश्मतर: Wet eyes ज़ीस्त : Life