अनजान बने फिरते है आजकल सबसे, अब हमे जानने की गुस्ताखी़ ना करना.. डरते है खु़ल जाये ये नकाब़ अगर, आयेगा ना फिरसे खुदको सँवारना.. बडी़ मुश्किल से कैद कर रखी है जो सदीयों के पिटारों में, वो बीते कल की यादें फिर सतायेगी.. चार दिन मौसम दिखाकर खुशी के, फिर एक काली बरखा अश्कों की बरसात लायेगी!!