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खोज रही थी खुशी असीमित बना रहा अवसादी प्रेम... उन

खोज रही थी खुशी असीमित
बना रहा अवसादी प्रेम...

उन्मुक्त मन को बांध गया तो
फिर कैसी आज़ादी प्रेम???

मन की तृष्णा मिटी नहीं और 
आँखे प्यासी प्यासी प्रेम...

जीवन ज्योति बना कर सोचा
जिसको,गहरी घोर उदासी प्रेम...
राग,द्वेष,विश्वासघात क्यों??
जब मन से है सन्यासी प्रेम....

स्वाति नक्षत्र में चातक सा खोज रहा है प्रीत को प्रेम...
हार हार कर हर बाजी
जीत रहा है जीत को प्रेम...

भूल सके न एक एक को 
कैसा निश्च्छल प्रेमी प्रेम...

याद करे न एक एक को 
ऐसा भी निष्ठुर प्रेमी प्रेम...

©SHIVANI #अवसादी_प्रेम
खोज रही थी खुशी असीमित
बना रहा अवसादी प्रेम...

उन्मुक्त मन को बांध गया तो
फिर कैसी आज़ादी प्रेम???

मन की तृष्णा मिटी नहीं और 
आँखे प्यासी प्यासी प्रेम...

जीवन ज्योति बना कर सोचा
जिसको,गहरी घोर उदासी प्रेम...
राग,द्वेष,विश्वासघात क्यों??
जब मन से है सन्यासी प्रेम....

स्वाति नक्षत्र में चातक सा खोज रहा है प्रीत को प्रेम...
हार हार कर हर बाजी
जीत रहा है जीत को प्रेम...

भूल सके न एक एक को 
कैसा निश्च्छल प्रेमी प्रेम...

याद करे न एक एक को 
ऐसा भी निष्ठुर प्रेमी प्रेम...

©SHIVANI #अवसादी_प्रेम