प्रेमवश या वासना के लिए-
एक युवक एक युवती से प्रेम करने लगा।प्रेम मे जोश अधिक होता है,होश कम। वह उससे विवाह की जिद करने लगा।समझदार अभिभावकों ने उस सम्बन्ध को ठीक नहीं समझा,सो रोका।पर युवक किसी की सुनना नहीं चाहता था। परेशान होकर एक सन्त के पास गया।
सन्त ने पूछा-"भाई लड़की से विवाह करने में तो बुराई नहीं,परन्तु सोच लो,उसके पिता आदि नाराज हुए तो ?"
युवक जोश भरकर बोला-"प्यार के लिए मैं कोई भी कुर्बानी दे सकता हूँ।"
सन्त हँसे,बोले - “बेटा! प्यार तो तेरी माँ ने भी तुझे कम नहीं किया;पिता,भाई आदि ने भी प्यार ही किया।उनके प्यार के लिए कोई कुर्बानी दी क्या ? ठीक से देख कुर्बानी प्यार के लिए कर रहा है या वासना के लिए ?”"
युवक को बोध हुआ।उसने सभी पक्षों पर विचार किया और शादी का विचार बदल दिया।
पश्चिम की लुभावनी हवा में आजकल का माहौल कुछ इसी तरह का बना हुआ है। प्यार कम वासना ज्यादा है। ऐसे में अभिभावको को चाहिए कि वें अपने बच्चों की प्रत्येक क्रिया पर प्रतिक्रिया करें।अन्यथा उनके साथ यही बात सिद्ध होगी कि “फिर पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग जाए खेत।”
बच्चे फसल की तरह होते हैं,जिस प्रकार किसान अपनी फसल की रक्षा और देखभाल दिन-रात करता है;उसी प्रकार आज के अभिभावकों को अपने बच्चों की करनी चाहिए। #India#story#Culture#Hindi#प्रेरक#L♥️ve