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रे मन, तूने... क्या छू लिया? आंखों के कोर में, गर

रे मन, 
तूने...
क्या छू लिया?
आंखों के कोर में,
गरम जल के बूंदें,
अटक गई...
मन में कोई बदली,
भटक गई..
स्मृतियों की किरणें,
बिखरी,
उदास सी धूप,
निखरी,
ये कोई भ्रम है?
कि.....सब...
निखर गया सच में? 2pm
सुशील कुमारी "सांझ" 
सच्ची जज
ये भ्रम नहीं...
सत्य है😍😊
रे मन, 
तूने...
क्या छू लिया?
आंखों के कोर में,
गरम जल के बूंदें,
अटक गई...
मन में कोई बदली,
भटक गई..
स्मृतियों की किरणें,
बिखरी,
उदास सी धूप,
निखरी,
ये कोई भ्रम है?
कि.....सब...
निखर गया सच में? 2pm
सुशील कुमारी "सांझ" 
सच्ची जज
ये भ्रम नहीं...
सत्य है😍😊