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पता नहीं यह मैं कहां, खींचा जा रहा हूं, शायद यह

पता नहीं यह  मैं कहां,
 खींचा जा रहा हूं,
शायद यह ताना देना चाहती है,
 परिवार का, समाज का, 
पर मुझे फर्क नहीं पड़ता,
 मैं कहां जा रहा हूं ।
लगता है एक नया रास्ता,
 तैयार करता है यह ताना ,
जो बुनता है मेरे सपनों को,
मेरी नई उड़ान को ,
 जिसे मुझे  भी नहीं पता।

©Vikramaditya 
  पता नहीं कहां
vikramaditya9564

Vikramaditya

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पता नहीं कहां #कविता

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