दम घुट रहा है यहां शहर में ,कोई तो हमें मेरे गाँव पहुंचा दो, खत्म़ हो चुकी हो शहरों में रिश्तों की कीमत और मर्यादा, मुझे अमूल कीमत और मर्यादा वाले मेरे गाँव पहुंचा दो, बहुत याद आ रहा गाँव ,अब यहाँ शहरों में मन नही लगता, **_हां कहां था कभी कि इस शहर को छोडूंगा तो बहुत दर्द होगा, लेकिन अब ऐसा कुछ नही होगा,परिचित होकर जिससे मैं उस पर और इस शहर पर नाज़ करता था,अम्रर्यादित है वो,और असभ्य है वो,धर्म को पूजते मगर स्वयं सबसे बडा़ अधर्म है...*_* OPEN FOR COLLAB🌟🌟🌟 എഴുത്തുലോകത്തിനു ഒപ്പം ചുവടുകൾ എഴുതാൻ തയ്യാറാണോ ചങ്ങാതിമാരെ.. എങ്കിൽ എഴുതാം നമുക്ക് ഒരുമിച്ചു ഒന്നായി.... #ശുഭചിന്ത ചിന്തകൾക്ക് ഒരിടം