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ओस की बूंद, पत्ते पर जमी नहीं, क

                  ओस की बूंद, पत्ते पर जमी नहीं,
क्या हुआ अगर बहती धारा, नदी किनारे थमी नहीं।

करवट बदलते थक गए हम, नींद नजाने कहाँ गायब,
बेचैन रहे हम पूरे दिन, बेचैनी में कमी नहीं।

चलते चले जब रास्ते टटोलते, न इधर देखे न उधर हम,
इरादे फौलादी बना लिए अब, आँखों में कोई नमी नहीं।

लहू लुहान यह ज़ुबान मेरा, फिर भी आवाज़ दबी नहीं,
झगड़ते दिखे यह पूरी दुनिया, बस झगड़े हम ही नहीं। क्या हुआ अगर...
#क्याहुआ #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine #yqquotes #yqtales #poetry #कोराकाग़ज़
Collaborating with YourQuote Didi
                  ओस की बूंद, पत्ते पर जमी नहीं,
क्या हुआ अगर बहती धारा, नदी किनारे थमी नहीं।

करवट बदलते थक गए हम, नींद नजाने कहाँ गायब,
बेचैन रहे हम पूरे दिन, बेचैनी में कमी नहीं।

चलते चले जब रास्ते टटोलते, न इधर देखे न उधर हम,
इरादे फौलादी बना लिए अब, आँखों में कोई नमी नहीं।

लहू लुहान यह ज़ुबान मेरा, फिर भी आवाज़ दबी नहीं,
झगड़ते दिखे यह पूरी दुनिया, बस झगड़े हम ही नहीं। क्या हुआ अगर...
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