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चुप्पी मन को चुभती है बदरा गरज कर शांति की बूंदे

चुप्पी मन को चुभती है  बदरा 
गरज कर शांति की बूंदे बरसा 
तरस गए हैं श्रवण को तेरा ये गर्जन
 पिपासा को बदरा कुछ तो बुझा ।।

तू गरजे तो बिजुरी कौंधे
मन की बिजुरी आंखें मूंदे
हो शांत मन का अंधेरा
बरसे तन पर तरसी बूंदें ।।

तेरी गर्जन शांत कर दे वो रूदन
जीवों का वो करुण क्रंदन
निरीह प्राणियों पर तरस तो खा
आज बरसों की प्यास बुझा ।।

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