परिंदे आसमां में नजर आते कहां.. अब कबूतर भी घोसाला बनाते कहां! फूल को बगीचे से जो आंखे बचाकर तोड़ते है.. गर सूख जाए जंगल तो एक भी पेड़ लगते कहां! इक जज़्बात बिगाड़ जाती है इंसान को.. तुम एक भी वादे को कभी निभाते है कहां! मसीहो की आदत अब खून पीने सी हो गई.. इक गरीब को भी खाना खिलाते कहां!! सफेदपोश घूम जाते है घर घर चुनाव में.. हर अंधेरे रात में जुगनू नज़र आते कहां! इस शहर से वास्ता बस शराब से ही नहीं.. मयखाने के सारे शराबी अब नज़र आते कहां! खिताब मिली है तो खिताब की कद्र कर"कमली".. यहां बबूल छोड़कर अब पीपल नज़र आते कहां! _@कमली पेज नंबर:636 अनुशीर्षक में कुछ महान शायर के चंद अशआर::_ 😊😊 अब परिंदे भी घोसला बनाते कहां🙏♥️😊 यहां दरिया पर पाबंदी नहीं है.. मगर पहरे लबो पर लगा रहे है! राहत इंदौरी🙏