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उम्र भर चाहा के “ज़मीन-ओ-आसमान” हमारा होता काश कहीं

उम्र भर चाहा के “ज़मीन-ओ-आसमान” हमारा होता
काश कहीं तो #ख्वाहिशों का भी कोई किनारा होता

यह सोच के उस “मुसाफिर” को रोका ही नहीं
दूर_जाता ही क्यों अगर वो #हमारा होता

©Malik G