-खुद की पहचान- जालसाजी व फरेबी दुनिया से त्रस्त हूँ , खुद में ही रहता अब तो मैं मस्त हूँ , ख्वाबों को संजोने में अभी व्यस्त हूँ । खामोशी के समुन्दर में हूँ बह रहा इधर उधर , इस संकट के क्षण में लगे बस नैया पार भवँर , बेटोरकर सारे गमों को अभी हूँ कर रहा गुजर । अभी दुनिया है मेरी बड़ी गुमनाम , है बनानी अभी खुद की पहचान , है तोड़ना कइयों का विक्षिप्त अभिमान । फितरत में है अभी लॉकडाउन का सफर , फिलहाल किताबों में भटक रहा अपने ही घर , सता रही आधी अधूरी आकांछाओं की कहर । कर नही सकता मंजिलों से समझौता , यहाँ राह भटकाने खड़े पल पल मुखौटा , चाह नही बनने का फरेबी लोगों का चहेता । #खुद की पहचान