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दिल्ली की सीमाओं से उठकर पंजाब की रैली पटरियों पर

दिल्ली की सीमाओं से उठकर पंजाब की रैली पटरियों पर पहुंचे किसान आंदोलन करीब एक हफ्ते पहले वैली रोड अभियान के बाद समाप्त हो गया है लेकिन किसानों के नाम पर भविष्य में नए साल में इसी तरह के आंदोलन फिर देखने को मिल सकते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि तीनों किसी कानून वापस किए जाने के बावजूद किसानों के मुद्दे जिससे की तरह से बने हुए हैं वैसे तो कृषि प्रधान देश भारत में खेती किसान कभी भी मुनाफे का सौदा नहीं कर रही लेकिन एक बड़ी आबादी का भरण पोषण करने में भी सक्षम की खेती किसी किसानी की बदली 1991 में शुरू हुई है नई आर्थिक नीति के बाद इसमें तेजी आई इसका कारण यह रहा कि बाजारवादी अर्थव्यवस्था का रथ महानगरों और राजमार्ग और से अलग चलकर गांव की पगडंडी तक पहुंचा है यही नहीं इस वजह से खेती किसानी का भला नहीं होगा किसानों को बाजार में अपनी ताकत बढ़ानी होगी यह तभी संभव हो पाएगा जब बाजार में किसानों के शोषण को रोकने के पुख्ता इंतजाम किए जाएं ताकि किसान बाजार अर्थव्यवस्था के साथ कदमताल करें कृषि कानून विरोधी आंदोलन की विडंबना यह रही है कि इस आंदोलन की बढ़ी हुई नियोजित तरीके से मोदी सरकार विरोधी मुहिम के रूप में चलाया गया है इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले 7 वर्ष में किसानी खेती के साथ-साथ मोदी सरकार द्वारा किए गए दुर्गा में उपाय दबोचे गए हैं सच्चाई यह है कि 2014 से ही मोदी सरकार बीज सिंचाई उर्वरक और कीटनाशक के क्षेत्र में सुधार कर रही है ताकि किसान सफल विधि करण को अपनाएं उल्लेखनीय है कि हरित क्रांति की अगुआ राज्य में गेहूं धान गन्ना की एक कम फसली खेती में धरती को बंजर बना कर रख दिया है मिट्टी पानी हवा सब कुछ प्रदूषित हो चुके हैं सबसे बड़ी बात यह है कि खेती को बदलते परिवेश के साथ ढालने में चंदन फसलों का समर्थन मूल्य और बिच्छू के इलाकों में सरकारी खरीद का अभिनय नेटवर्क एक बड़ी बाधा बन चुका है

©Ek villain # दुष्प्रचार के शिकार कृषि सुधार के उपाय

#HappyNewYear
दिल्ली की सीमाओं से उठकर पंजाब की रैली पटरियों पर पहुंचे किसान आंदोलन करीब एक हफ्ते पहले वैली रोड अभियान के बाद समाप्त हो गया है लेकिन किसानों के नाम पर भविष्य में नए साल में इसी तरह के आंदोलन फिर देखने को मिल सकते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि तीनों किसी कानून वापस किए जाने के बावजूद किसानों के मुद्दे जिससे की तरह से बने हुए हैं वैसे तो कृषि प्रधान देश भारत में खेती किसान कभी भी मुनाफे का सौदा नहीं कर रही लेकिन एक बड़ी आबादी का भरण पोषण करने में भी सक्षम की खेती किसी किसानी की बदली 1991 में शुरू हुई है नई आर्थिक नीति के बाद इसमें तेजी आई इसका कारण यह रहा कि बाजारवादी अर्थव्यवस्था का रथ महानगरों और राजमार्ग और से अलग चलकर गांव की पगडंडी तक पहुंचा है यही नहीं इस वजह से खेती किसानी का भला नहीं होगा किसानों को बाजार में अपनी ताकत बढ़ानी होगी यह तभी संभव हो पाएगा जब बाजार में किसानों के शोषण को रोकने के पुख्ता इंतजाम किए जाएं ताकि किसान बाजार अर्थव्यवस्था के साथ कदमताल करें कृषि कानून विरोधी आंदोलन की विडंबना यह रही है कि इस आंदोलन की बढ़ी हुई नियोजित तरीके से मोदी सरकार विरोधी मुहिम के रूप में चलाया गया है इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले 7 वर्ष में किसानी खेती के साथ-साथ मोदी सरकार द्वारा किए गए दुर्गा में उपाय दबोचे गए हैं सच्चाई यह है कि 2014 से ही मोदी सरकार बीज सिंचाई उर्वरक और कीटनाशक के क्षेत्र में सुधार कर रही है ताकि किसान सफल विधि करण को अपनाएं उल्लेखनीय है कि हरित क्रांति की अगुआ राज्य में गेहूं धान गन्ना की एक कम फसली खेती में धरती को बंजर बना कर रख दिया है मिट्टी पानी हवा सब कुछ प्रदूषित हो चुके हैं सबसे बड़ी बात यह है कि खेती को बदलते परिवेश के साथ ढालने में चंदन फसलों का समर्थन मूल्य और बिच्छू के इलाकों में सरकारी खरीद का अभिनय नेटवर्क एक बड़ी बाधा बन चुका है

©Ek villain # दुष्प्रचार के शिकार कृषि सुधार के उपाय

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sonu8817590154202

Ek villain

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