कैसे कहूँ मिच्छामिदुक्कडं शर्म बहुत आती है, कहता हूँ हर साल फिर भी भूलें हो ही जाती है, कहीं न कहीं स्वार्थ भावना मुझको ठगती है, मिच्छामिदुक्कडं कहना औपचारिकता सी लगती है, क्यों मैं इतना कमजोर जीवन का सार समझ नहीं पाता, तुम्हें ठेस पहुँचाने की गलती बार बार दोहराता, मैं प्रार्थना करने आया हूँ आज तुम्हारे द्वार, मुझको तुम हरगिज क्षमा न करना इस बार, मेरे लिए तुम दुआ मांगना मैं इतना पावन हो जाऊँ, दिल दुखाने की गलती मैं फिर कभी न दोहराऊं, अहंकार के अश्व से मैं अब नीचे उतर आता हूँ, आज तुम्हारे चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ, मेरे प्रति यदि कटुता के शूल हों तो दिल से हटा देना , ताउम्र के लिए तुम मुझे अपने दिल में बिठा देना। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 मिच्छामि दुक्कड़म!!