खिचड़ी परोसता मैं कभी कभार तहरी साधारण शब्दों में सरल बातें नहीं गहरी शब्दों की माला बनाता बहुरंग सतलहरी कसता न कायदे छंद चाह न पाऊँ दस्तुरी डोरी तान गाता बेताल मृदंग संग कजरी मिले अनंत उमंग संग बैठे जो एक लहरी लय मिले संग संगत बैठे जो बिछा दरी ! #खिचड़ी