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बचपन तक तो सब कुछ ठीक था, जवानी की जगमगाहट में हो

 बचपन तक तो सब कुछ ठीक था,
जवानी की जगमगाहट में हो रहे हैं अपनों से दूर..!

ख़्वाहिशें पूरी करने निकले हैं न जाने ये कैसी,
मन में भर के फितूर यूँ होकर ज़माने में मजबूर..!

अलग अलग सोच है विचारों में है मतभेद,
जीवन की नैया में अपने ही कर बैठे हैं छेद..!

नहीं पात्र कोई विश्वास का हो गया है अब आभास,
उठा पटक राजनीती की जैसे जीतने का कर रहे प्रयास..!

घर में बैठे शख़्स की क़द्र रही न जरा भी,
जीने की आस में हर शख़्स हर दिन मरा भी..!

तन्हा हैं हम तन्हाई सताती है गाते हैं,
बेईमानी का रोग लिए चेहरे बहुत छुपाते हैं..!

महफ़िलों में रौनक होती थी जिनके नाम की,
ख़बरों में नज़र आते हैं घोषणा होती जिनपर अब ईनाम की..!

हर कोई दिखा रहा है जो वो है ही नहीं हक़ीक़त में,
दिखावे की चकाचौंध में मुफ़्त है सभी बस ख़ूबसूरत चेहरे हैं कीमत में..!

©SHIVA KANT
  #kitaabein #ApnoSeDoor