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मर्यादा गर मानव तोड़े , होता पतन मानवता का, यदि त

 मर्यादा गर मानव तोड़े , होता  पतन मानवता का,
यदि तोड़ दे प्रकृति तो , होता  हनन   सुंदरता का,

भूल जाये गर अग्निदेव , तो  बचे  राख बर्बादी की,
टूट जाये जनसँख्या चक्र,तो थाह नही आबादी की,

तय कर रखी है क़ुदरत ने ,मर्यादा हर एक शय की,
मर्यादित हो आचार विचार ,यही है पूंजी जीवन की,

सिंधु  तोड़  दे  मर्यादा , तो जल प्रलय आ जायेगी,
मर्यादित है पर्यावरण गर,ये श्वास तभी तो आएगी,

हवा बहे यदि मर्यादा में ,शीतल कर दे तन मन को,
टूटे जिस दिन मर्यादा ,ले जाये उड़ा हर गुलशन को,

शुद्ध आचरण ,नीति नियम ,यही खज़ाना जीवन का,
हर फूल महकता रहे सदा, धरती  माँ के आँगन का।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #मर्यादा
#आचरण