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तुम्हारा प्रेम ही तो सोचा था, जब लफ़्ज़ों से मुलाक

तुम्हारा प्रेम ही तो सोचा था, जब लफ़्ज़ों से मुलाक़ात हुई थी, सामने तुम थे, और शायराना अंदाज़ में तुमसे बात हुई थी,

जो अधूरे थे ज़ज़्बात, उन्होंने मुक़म्मल मुक़ाम पाया था, कविता सी सजी थी ज़िन्दगी, तेरा प्यार जब जीवन में आया था,

जब दूर होते थे तुम तो, अल्फ़ाज़ों में तुम्हे ही ढूँढा करते थे, अपनी हर नज़्म में खूबसूरती से, तुम्हे ही तो गढ़ा करते थे,

एक रोज जब तुम्हे लिखा था, तुमको ही पाने की आरज़ू में, उलझे हुए ज़ज़्बात हैं अब, कोरा है दिल का पन्ना तेरी जुस्तजु में,

मेरी नज़्म अधूरी है, तुम मिलो तो मुक़म्मल मुक़ाम पाए, खिलखला उठे अल्फ़ाज़ सारे, पतझड़ से पन्ने पर बहार आये ।।

©@_सुहाना सफर_@꧁ঔৣMukeshঔৣ꧂RJ09
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