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बहुत हुआ तेरा नखरा लो ,अब मैं ही कह गया देख ले

बहुत हुआ  तेरा  नखरा  लो ,अब मैं  ही कह गया
देख ले  जाना तुझे मैं अब , ज़िन्दगी भी कह गया  । 

मज़ा मेरे किरदार ,का बहुत ले लिया मैंने
कई बार तो मैं , ख़ुद की कहानी  कह गया  । 

लोग बहुत मिलते है,  हर तऱफ जो ठहरे
मुझ पे भी रुकेगा कोई ,इक नज़ूमी कह गया ।

देखनी है मुझे कहानी, तेरे साथ के बाद की
साथ  वाले  स्वाद  की , मैं  रवानी  कह गया । 

कुछ मोड़ हो अनचाहे , कुछ अचंभे से भरे
हर  सफ़र  को तो मैं ज़िंदगानी कह गया । 

मेरी सलामती की,  दुआएं  माँ रोज़ है करतीं
तेरे दुआ में मुझे माँगने को मैं खानदानी कह गया । 

कुछ तू बिगड़ फ़िर ,इस शरीफ़ को बिगाड़ दे
शरबत सी ज़िन्दगी को मैं ,शरबती कह गया । 

फलसफों की कहावतें अब कहाँ  है ,सुनती
मेरा फ़लसफ़ा तो, ज़िन्दगी ज़िन्दगी कह गया । 

वो साथ- साथ,  नगें पैर गुरूद्वारे जाना 
अपनी अरदासों में मैं तुझे, अरदासी कह गया । 

मेरी  फ़िक्र  में  तेरे  ,मथ्थे पे शिकन की लकीरें
जाने कौन सा कम्बख़त ,तुझे सयानी कह गया । 

बुढ़ापे  हाथ  पकड़  , दोनों  साथ  घूमेंगे 
ज़िन्दगी भी इक तीरथ ,राम ज़ुबानी कह गया ।  

मेरी काली आँखें पढ़ के तो देख, ओ ज़िन्दगी
मुन्तज़िर तो सतिन्दर ,ख़ुद को यूँ ही कह गया  । 

©️✍️ सतिन्दर
 #kuchलम्हेंज़िन्दगीke #satinder #सतिन्दर #नज़्म #कहगया
बहुत हुआ  तेरा  नखरा  लो ,अब मैं  ही कह गया
देख ले  जाना तुझे मैं अब , ज़िन्दगी भी कह गया  । 

मज़ा मेरे किरदार ,का बहुत ले लिया मैंने
कई बार तो मैं , ख़ुद की कहानी  कह गया  । 

लोग बहुत मिलते है,  हर तऱफ जो ठहरे
मुझ पे भी रुकेगा कोई ,इक नज़ूमी कह गया ।

देखनी है मुझे कहानी, तेरे साथ के बाद की
साथ  वाले  स्वाद  की , मैं  रवानी  कह गया । 

कुछ मोड़ हो अनचाहे , कुछ अचंभे से भरे
हर  सफ़र  को तो मैं ज़िंदगानी कह गया । 

मेरी सलामती की,  दुआएं  माँ रोज़ है करतीं
तेरे दुआ में मुझे माँगने को मैं खानदानी कह गया । 

कुछ तू बिगड़ फ़िर ,इस शरीफ़ को बिगाड़ दे
शरबत सी ज़िन्दगी को मैं ,शरबती कह गया । 

फलसफों की कहावतें अब कहाँ  है ,सुनती
मेरा फ़लसफ़ा तो, ज़िन्दगी ज़िन्दगी कह गया । 

वो साथ- साथ,  नगें पैर गुरूद्वारे जाना 
अपनी अरदासों में मैं तुझे, अरदासी कह गया । 

मेरी  फ़िक्र  में  तेरे  ,मथ्थे पे शिकन की लकीरें
जाने कौन सा कम्बख़त ,तुझे सयानी कह गया । 

बुढ़ापे  हाथ  पकड़  , दोनों  साथ  घूमेंगे 
ज़िन्दगी भी इक तीरथ ,राम ज़ुबानी कह गया ।  

मेरी काली आँखें पढ़ के तो देख, ओ ज़िन्दगी
मुन्तज़िर तो सतिन्दर ,ख़ुद को यूँ ही कह गया  । 

©️✍️ सतिन्दर
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