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आज मौसम ठंडी हवाओं संग ऐसा इतरा रहा था जैसे वर्षों

आज मौसम ठंडी हवाओं संग ऐसा इतरा रहा था जैसे वर्षों बाद दुपट्टा मै सिमटे मन्न  को लेहराने की आजादी मिल गई हो । सोचिए ना, उस एहसास की कल्पना इतनी खूबसूरत है कि एक एक धागे से बनी जिम्मेदारी से बना दुप्पटा आज कुछ पल के लिए आजाद है,एहसास ऐसा है तो वास्तविकता तो अत्यंत हसीन होगी। मन में यही सोचकर वो पगली लड़की निकल पड़ी आजादी को जीने, कुछ ही पल में खयाल आया है कि ये इतनी चहकती मुस्कान , ठीक नहीं,देखिए ना उसे जिम्मेदारी का दुप्पटा आजादी मै भ अपनी याद दिला रहा हैं,हवाओं से बत्यते उसके कदम अचानक लड़खड़ाने लग जाते है क्योंकि आजादी मैं भ जंजीरे अपने अंदाज में उसे रोक पा रही है। ए , पगली लड़की बताओ ना तुम आजादी जीने कहा जाओगी या इस दुप्पटे की कद्द मै सिमट जाओगी , कब तक तुम्हारी बातें ये कलम कागज कहते रहेंगे तुम कब अपनी कहानी सुनाओगी।।
बताओ ना

©Meri Kalam
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