गुरु महिमा गुरु सी छाया दे सके, ऐसा वृक्ष न होय। परिभाषा जो गढ़ सके, ऐसा ग्रँथ न कोय।। गुरु कृपा अनमोल है, ये न हाट बिकाय। जो श्रद्धा से मिले, हृदय उसी बस जाय।। गुरु वाणी पारसमणि, जो सन्मुख में जाय। जग को रौशन जो करे, वो हीरा बन जाय।। गुरु बिना कहाँ ज्ञान है, बिना गुरु अज्ञान। शिक्षक तो ब्रह्मांड है, लो यह तुम अब जान।। माता-पिता तो जन्म दे, गुरु देता आकार। जो गुरु न पूजिये, जीवन वह धिक्कार।। मन मंदिर उज्ज्वल करे, मन का तिमिर मिटाय। बाहर भी रौशन करे, ऐसा दीप जलाय।। ज्ञान का सागर गुरु, सब रस यहीं समाय। गुरु अमृत का कलश, जो मन प्यास बुझाय।। पथ प्रकाश बनते गुरु, जो राह सही दिखाय। सब ऋण चुकता कर लिया, गुरु ऋण चुका न जाय।। ©पंकज भूषण पाठक "प्रियम" गिरिडीह, झारखंड। #guru