“जीवन की हक़ीक़त कहानी” अनुशीर्षक में आज भी कितनी नादानी करता है यह दिल। कुछ समझता ही नहीं बरसों बाद देखा उनको। फिर से ये दिल उनके लिए दुआएं मांग बैठा। दिल इतना नादान बन जाता कभी बच्चा। दुश्मनों के महफ़िल में उस दिन चल रही थी मेरे कत्ल की तैयारी। मैं पहुंचीं तो बोले यार बहुत लंबी है उम्र तुम्हारी। मैंने भी मन ही मन सोचा खाक मज़ा है जीने में।