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मैं दोहो का वर्षोँ से दीवाना, वो पूरी कविता लगती ह

मैं दोहो का वर्षोँ से दीवाना,
वो पूरी कविता लगती है।

मैं एक शेर मुक्कमल होने को,
वो किसी गजल सी लगती है।

मैं अनचाहा-सा ख़्वाब अधूरा,
वो प्यारी हकीकत लगती है।

मैं उसके सपनों में खोया-सा,
वो वर्षों से जागी लगती है।

मैं कोई ग़जल अधूरी सी,
वो कोई मकता लगती है। मकता - ग़जल का अंतिम शेर
#yqmai
#yqvo
#yqgajal
#yqsher
#yqkavita
#yqsaumitr
मैं दोहो का वर्षोँ से दीवाना,
वो पूरी कविता लगती है।

मैं एक शेर मुक्कमल होने को,
वो किसी गजल सी लगती है।

मैं अनचाहा-सा ख़्वाब अधूरा,
वो प्यारी हकीकत लगती है।

मैं उसके सपनों में खोया-सा,
वो वर्षों से जागी लगती है।

मैं कोई ग़जल अधूरी सी,
वो कोई मकता लगती है। मकता - ग़जल का अंतिम शेर
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manishkumar3147

Manish Kumar

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