"हम और तुम" -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में...) जब भी मैं तुम्हें यानी अपने अंतर्मन को लिखती हूं जो तुम्हीं हो !!....तो यकीन मानो मैं सिर्फ़ तुम्हें नहीं लिखती बल्कि ख़ुद का वो हिस्सा लिखती हूं जो मैंने लिया है.... तुम्हारे मस्तिष्क के आसमां से, तुम्हारी अंतर्मन की जमीं से , तुम्हारे पलकों की अग्नि से ,