Nojoto: Largest Storytelling Platform

❤️ मैं और मेरी चाय❤️ सड़क के उस‌ नुक्कड़ पर , टपरी

❤️ मैं और मेरी चाय❤️
सड़क के उस‌ नुक्कड़ पर , टपरी के ‌नीचे‌ होकर खड़े। जाड़े में या बरसात में,
जब मैं उतारता हूं,  इसको घूंट घूंट
अपने हलक से नीचे तो जैसे 
सुकून उतरता है। मेरी रग-रग में गर्माहट उतर आती है।  मेरे पोर पोर में।
और ‌मेरी तरह  तुमको ‌भी, ऐसा ही ‌लगता है क्या
कि‌ गर्मियों में इसकी  तासीर ‌बदल जाती है। और यह‌ देती है मुझे
बेइंतहा ठंडक।
मेरे सर दर्द मेरी थकान मेरी चिंताएं मेरे अवसाद
सबका यह इलाज है। कोई शख्स चाय को बुरा
 कहता है तो मुझे वो बहुत बुरा लगता है।
चाहे कोई इसकी  लाख बुराइयां करे
 इसकी खुशबू  खींच ही लेती है मुझे अपनी ओर ।
और मैं लगा ही लेता हूं 
इसको होंठों से।
 रिमझिम बरसती ‌बूंदों में राह भुलाते कोहरे में,
सड़क के नुक्कड़ की टपरी  पर खड़े होकर चाय पीने
 का मजा कुछ और ही है
सच सच बताना  तुमको भी
 ऐसा ही ‌लगता है क्या
सब मुझे कहते हैं कि
 मैं चाय का दीवाना हूं
मुझे भी ऐसा ही ‌लगता है।
आपका क्या ख्याल है।

डियरCOMRADE

©Ankur Mishra ❤️ मैं और मेरी चाय❤️
सड़क के उस‌ नुक्कड़ पर , टपरी के ‌नीचे‌ होकर खड़े। जाड़े में या बरसात में,
जब मैं उतारता हूं,  इसको घूंट घूंट
अपने हलक से नीचे तो जैसे 
सुकून उतरता है। मेरी रग-रग में गर्माहट उतर आती है।  मेरे पोर पोर में।
और ‌मेरी तरह  तुमको ‌भी, ऐसा ही ‌लगता है क्या
कि‌ गर्मियों में इसकी  तासीर ‌बदल जाती है। और यह‌ देती है मुझे
बेइंतहा ठंडक।
❤️ मैं और मेरी चाय❤️
सड़क के उस‌ नुक्कड़ पर , टपरी के ‌नीचे‌ होकर खड़े। जाड़े में या बरसात में,
जब मैं उतारता हूं,  इसको घूंट घूंट
अपने हलक से नीचे तो जैसे 
सुकून उतरता है। मेरी रग-रग में गर्माहट उतर आती है।  मेरे पोर पोर में।
और ‌मेरी तरह  तुमको ‌भी, ऐसा ही ‌लगता है क्या
कि‌ गर्मियों में इसकी  तासीर ‌बदल जाती है। और यह‌ देती है मुझे
बेइंतहा ठंडक।
मेरे सर दर्द मेरी थकान मेरी चिंताएं मेरे अवसाद
सबका यह इलाज है। कोई शख्स चाय को बुरा
 कहता है तो मुझे वो बहुत बुरा लगता है।
चाहे कोई इसकी  लाख बुराइयां करे
 इसकी खुशबू  खींच ही लेती है मुझे अपनी ओर ।
और मैं लगा ही लेता हूं 
इसको होंठों से।
 रिमझिम बरसती ‌बूंदों में राह भुलाते कोहरे में,
सड़क के नुक्कड़ की टपरी  पर खड़े होकर चाय पीने
 का मजा कुछ और ही है
सच सच बताना  तुमको भी
 ऐसा ही ‌लगता है क्या
सब मुझे कहते हैं कि
 मैं चाय का दीवाना हूं
मुझे भी ऐसा ही ‌लगता है।
आपका क्या ख्याल है।

डियरCOMRADE

©Ankur Mishra ❤️ मैं और मेरी चाय❤️
सड़क के उस‌ नुक्कड़ पर , टपरी के ‌नीचे‌ होकर खड़े। जाड़े में या बरसात में,
जब मैं उतारता हूं,  इसको घूंट घूंट
अपने हलक से नीचे तो जैसे 
सुकून उतरता है। मेरी रग-रग में गर्माहट उतर आती है।  मेरे पोर पोर में।
और ‌मेरी तरह  तुमको ‌भी, ऐसा ही ‌लगता है क्या
कि‌ गर्मियों में इसकी  तासीर ‌बदल जाती है। और यह‌ देती है मुझे
बेइंतहा ठंडक।