पल्लव की डायरी गुमराह हो चली जिंदगी होड़ में मस्ती मन की मर गयी सब कुछ पाने में खप गयी उमरे बेचैनी हर पल रहती है मिलाते है हाथ स्वार्थो के लिये लोग गर्मजोशी रिश्तों में कहाँ अब रहती है मदद के लिये उठते नही अब हाथ प्रतिस्पर्धा यहाँ हमेशा चलती है जुगाड़ में लगी रहती जिंदगी साधनों के साधने में खैर खबर दूसरो के प्रति रहती नही आते रहते वारेंट पर वारेंट मौत के मगर इच्छाओं के समुंदर कभी भरते नही प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #HandsOn इच्छाओं के समुंदर कभी भरते नही