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कैसे हसती हो फुलझड़ी हो क्या ? अब भी उनती ही नकचड़

कैसे हसती हो फुलझड़ी हो क्या ?
अब भी उनती ही नकचड़ी हो क्या ?
चांद की सांस क्यों  थमी सी है ।
अपनी खिड़की में तुम खड़ी हों क्या ?
तुम को  थामे हैं इतनी शिद्दत से ,
तुम मेरी जान से बड़ी हो क्या ?
क्यों उदासी मुझे नहीं छूती ,
तुम मेरे साथ हर घड़ी हो क्या ?

©zaid khan
  #Sanshine
zaidkhan1151

zaid khan

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