पल्लव की डायरी अंतर्द्वंदों में मन के भाव जब मचलते हो प्रसव पीड़ा से शब्द कविता में अवतरित होते हो वेदनाओं के भेदन करके चुनोतियाँ राष्ट समाज को देते हो तम के बादल अलसा कर अपनी व्यथा पर रो देते हो सागर जैसी पीड़ा को लिखने खूनी स्याही से सौ सौ पन्ने भर देते हो जीवन की हर सांसो में जहर सत्ता के मद में भरते हो तब उद्देलित होकर कलम हथियार बन संग्राम की चिंगारी बनती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #WritingForYou खूनी स्याही से सौ सौ पन्ने भर देते हो #WritingForYou