तुम, साथ थे तो हर रोज ही जिंदगी जन्नत सी लगती थी। एक तुम्हारे फोन के इंतजार में हम अपने हर दिन के कई बेहतरीन पलों को खो दिया करते थे। जानते थे हम की तुम्हें हमारे खोते पलों की कोई कद्र ही नहीं होती थी। तुम उन्हें मेरा खालीपन का तोहफा समझते थे। तुम्हें हमारी भावनाएं किसी घर में रखे रद्दी की तरह लगते थे। हमने कई दफा कोशिश की तुम्हें समझाने की पर तुम्हें समझाना और समझना हमारे समझ से परे था। तुम्हारे जाने के साथ ही हमने समझा कि प्रेम समर्पण का नाम तो जरूर होता है पर खुद की अहमियत को खत्म कर के नही।तुम्हारे अपने अलग ही उसूल थे जीवन के जिसमें तुम किसी तरह की भी कोई रियायत नही करते थे। हम बिछड़ गये पर तुम अपनी जिद पे रहे, यूं कह लो तुम्हारे लिए प्यार से अधिक तुम्हारी झूठी शान जरूरी थी। एक वो वक़्त था और एक आज का वक़्त है तुम अब अपने शान, उसूलों तक को दरकिनार कर आते हो पर हमारे अंदर प्यार ही नहीं बचा....! मैं भी मजबूर हूं....हो सके तो माफ करना...! ©SamEeR “Sam" KhAn #मेरी_कहानी