थी एक मन्नत जो कभी भी मुक्कमल न हो सकी, थी एक अधूरी कहानी जो कभी पूरी न हो सकी, थक गई थी मैं यूँ अकेले अकेले किरदार निभाते, एकतरफा थी वो मोहब्बत जो कभी कह न सकी, आख़िर कब तक चलता गुमनाम प्यार का किस्सा, न वो कभी इशारा समझे और मैं कभी बोल न सकी, साथ तो रब की रहमत है,वो साथ ही किस्मत में नही, कैसा फ़लसफ़ा है ये किस्मत भी मेरे हिस्से आ न सकी। ♥️ Challenge-724 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।