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अब चश्मे से भी सबकुछ धुंधला सा लगता है, मैं अब दु

अब चश्मे से भी सबकुछ धुंधला सा लगता है, 
मैं अब दुनिया को तुम्हारी नजरों से देखना चाहती हूँ,,

गर तेरी होने पर जमाना मुझे लाज शर्म के दायरे से बाहर आँकता है तो मैं ऐसी शर्म को उतार कर फेंकना चाहती हूँ,
मैं अब दुनिया को तुम्हारी नजरों से देखना चाहती हूँ,,

इस भीड़ भरी दुनिया में अकेलेपन की सर्दी में ठिठुर रही मैं अब तुम्हारी चाहत की धूप सेंकना चाहती हूं,,
हाँ ,मैं अब दुनिया को तुम्हारी नजरों से देखना चाहती हूँ.... #Najar, #Dhoop, #Duniya, #Shayari, #Sharif
अब चश्मे से भी सबकुछ धुंधला सा लगता है, 
मैं अब दुनिया को तुम्हारी नजरों से देखना चाहती हूँ,,

गर तेरी होने पर जमाना मुझे लाज शर्म के दायरे से बाहर आँकता है तो मैं ऐसी शर्म को उतार कर फेंकना चाहती हूँ,
मैं अब दुनिया को तुम्हारी नजरों से देखना चाहती हूँ,,

इस भीड़ भरी दुनिया में अकेलेपन की सर्दी में ठिठुर रही मैं अब तुम्हारी चाहत की धूप सेंकना चाहती हूं,,
हाँ ,मैं अब दुनिया को तुम्हारी नजरों से देखना चाहती हूँ.... #Najar, #Dhoop, #Duniya, #Shayari, #Sharif