तुम सोच सकतॆ हॊ हिज्र का वस्ल मॆं उतरना... यूँ आसान न था मॆरा इक शक्ल मॆं उतरना..। कुछ अजीब हालात से सादगी गुज़र रही है... ऎन-मुमकिन है उस फूल का क़त्ल में उतरना..। पहली करवट मॆं रातभर नींद ली है ‘ख़ब्तुल’... और ख़्वाब सीख रहे हैं दरअस्ल मॆं उतरना..। - ख़ब्तुल संदीप बडवाईक ©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 उतरना