भूली हुई इक याद का एक मंजर,होले होले याद आता है, उस चांद को देख कर,मुझे मेरा चांद याद आता है, वो झिल मिल शांत सी आंखे,सर्द ऋतु का अहसास दिलाता है, कोहरा छा गया हो जैसे आसमान में, वैसे ही उसकी यादों का समा आता है, महज़ चांद भी तो किसी का दिवाना है, पता नहीं उसे अब कौन रास आने वाला है, बादलों के पीछे छुप जाना भी उसी की आदत है, मुझसे ना मिलने का ये भी एक बहाना है, बख़ूबी निभा लेते है,वो चांद के अदाओं को, पर ये दाग उन पर भी तो लगाना है, बेवफ़ाई का तो मंज़र ही अलग है, उनसे मुझे थोड़ा ओर प्यार जताना है भूली हुई जब याद का मंज़र मुझको याद आना है, आंखो का नम होना और दिल में गम लहराना है। #alex