हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे पागल कुछ तो सोच यह तू ने कैसी शक्ल बनाई है इश्क़ ए पैचान की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम इश्क़ का पैशा हुस्न परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था ज्यों ही दरवाज़ा खोला है उस की खुश्बू आई है *jaun Elia* Jaun Elia shayari