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मोबाइल की सीमा में सिमट रही ज़िन्दगी हर किसी की, बा

मोबाइल की सीमा में सिमट रही ज़िन्दगी हर किसी की,
बाहरी दुनियाँ से कोई अधिक मतलब नहीं रखता..!

मोबाइल की व्यस्तता घटा रही है पारिवारिकता,
एकता का अभाव मोबाइल के प्रभाव से जीवन बना रहा है सस्ता..!

ढक रहे थे अभी तक जो पहले लिबास से ख़ुद को,
बेपर्दा होकर अब बेच कर शर्म हया ख़ुद को कोई नहीं ढकता..!

चला है ये दौर ज़िस्म की नुमाईश करने का,
सादगी को अब कोई पहले सा नहीं तकता..!

बड़ी बेग़ैरत है अब सोच सभी की,
संस्कारों की श्रेणी में कोई नहीं झुकता..!

अश्लीलता को फैला कर चाहें ख़ुद की प्रसिद्धि,
गाली-गलौच से भी कोई नहीं बचता..!

रचता है ढोंग ज़माने में बेहायपन दिखा कर,
बेशर्मी की राह पर अब कोई नहीं रुकता..!

©SHIVA KANT
  #walkalone #mobilekiduniya