// वो अक़्सर मुझे मेरी आँखों मे दिखता है // न जाने क्यों वो मुझमें मेरी तरह रहता है तुम बहुत प्यारी हो हरबार यही कहता है वैसे तो सजना बिल्कुल नही पसंद मुझे पर वो हर मर्तबा मेरी सांसो मैं सजता है वो अक़्सर मुझे मेरी आँखों मे दिखता है गर वो अक्षर है तो मैं अंतरा बन जाऊँगी वो कहे तो मैं ज़िन्दगी भर साथ निभाऊँगी जानती हूं चाहता है पर कुछ बोलेगा नही उसका यही दीदार मुझे कसक में भिगोता है हां वो अक़्सर मुझे मेरी आँखों मे दिखता है सुनो मेरी सादगी मे छिपा मेरा श्रृंगार तुम हो हाँ मेरे एवर एंड फॉरएवर वाला प्यार तुम हो बेशक़ महफूज़ होगे तुम सबकी जिस्मों जान में तेरी पाकीज़गी मुझमे दर दर गुलबार संजोता है और वो अक़्सर मुझे मेरी आँखों मे दिखता है वो जनता है उसके आगे हम शिकस्त-याब है उसकी साँसों से,उसकी धड़कन से हम बेताब है कोशिश करती दूर जाने की पर कम्बख्त इज़्तिराब रफ़्ता - रफ़्ता जेहन में उसका बुख़ार घोलता है और वो अक़्सर मुझे मेरी आँखों मे दिखता है वो शख्स जो मुझमे मुझ जैसे रहना चाहता था कुछ मेरी सुनना कुछ अपनी कहना चाहता था शेर-ओ-शायरी में मैंने उसकी शख्शियत बताई जो कुछ - कुछ मेरी मुद्दत सा बनना चाहता था _______________________🍃🌸____________________