मिट्टी में भी सोना उगा दूँ ओ इंसान हूँ मैं । सब की भूख मिटा दूँ ओ चमत्कार हूँ मैं। हर मौसम को अपना आशियाना बना लूं ओ इंसान हूँ मैं। कर्ज के बोझ से दबा कर्जदार हूँ मैं। हर मुसीबतों को सह लूँ ओ इंसान हूँ मैं। लोग मुझे कहते हैं अनदाता ओ गुमनाम हूँ मैं। नहीं जिस देश में मेरा कोई जोर उस देश का किसान हूँ मैं। नहीं किसी को परवाह मेरा ओ इंसान हूँ मैं।। ©jayprakash kumar nirala #farmerpoetri #farmersprotest