रुको-रुको,ठहरो पल भर को ********************** हरित वसन थी बसुंधरा जो मानव ने बेज़ार किया पुनः खोजते बरगद छाया कैसा ये उपकार किया? चंद चमकते पत्थर लेकर अपना घर गुलजार किया काट काट के शीश शिखर का नित नया बाज़ार किया। झरनों के निर्झर काया को बांध बना उपचार किया पीने का जल बोतल भर कर ये कैसा ब्यापार किया? स्वच्छ हवा को लूटा जी भर धुओं का बौछार किया मुँह पे पट्टी बांध घूमते कैसा ये आविष्कार किया? फेका कूड़ा जहाँ तहां जब जीवन को बेकार किया बाढ़-प्लवन और बीमारी निज जीवन आज़ार किया। ठहरो ठहरो रुको अभी भी जीवन मूल्य समझ जाओ मिट जाओगे ऐसे एक दिन जो ऐसा व्यवहार किया। #earth #thought #hindi #poem #alfaz