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राहें विलग हैं मंजिलें भी कहाँ एक हैं- भिन्नताएँ अ

राहें विलग हैं
मंजिलें भी कहाँ एक हैं-
भिन्नताएँ अनेक-
किन्तु अतिरेक,
 प्रेम का दिखावा-
जन्म लेती है,
 अथाह आत्ममुग्धता,
परस्पर अनुबंध न होते हुए भी,
दरकिनार कर उपेक्षाएं,
बचकानी हरकतें,
बटोरती हैं अपनत्व-
खोटी होती हैं कुछ,
- प्रवृत्तियाँ ।

©Gunjan Agarwal
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