तुम जिसे प्रेम समझते हो क्या है वो प्रेम? तुम जितनी गहराई से सोचते हो कौन है वों शख़्स? स्मृतियाँ तुम्हें करतीं हैं विचलित किसकी है स्मृतियाँ? दे सकोगे उत्तर अपने स्वयं को अपने प्रेम के अस्तित्व को?? नहीं…. कदापि नहीं! प्रेम किसी प्रश्न का उत्तर नहीं प्रेम प्रतिउत्तर भी नहीं! प्रेम अनुभूति है… जब कभी स्याह होती शाम में इक तस्वीर धुंधला जाती है तुम्हारे सामने.. तब एक लम्हा ही सही ठहरतीं है नज़र मंद मुस्कान भरें हौले से तुम विचर जाते हो सातवें आसमान पर कभी ना खत्म होने वाले उस अनन्त ब्रम्हांड पर! तब वो ठहरा पलछिन भारी हो उठता है उस विस्तृत ब्रम्हांड पर! तब सिहर उठते है.. पृथ्वी, आकाश, और पाताल इक कतरा जो गिरा.. भीग उठीं पलकें, बह चलीं हवा और… उस नम होती वायु में फ़िर अमरत्व पाता है प्रेम, ज्यों बरसता है पावस में भीगती धरा में, त्यों पल्लवित नेह बन बौछार खिल उठते हैं असंख्य कचनार! तब विलीन होता है मेरा प्रेम.. अपने अस्तित्व को स्वीकार किसी उत्तर - प्रति उत्तर से परे जी उठता है, लम्हा दर लम्हा दिन, महीने साल, काल दर काल भूत - भविष्य - वर्तमान से परे धरती - पाताल और आसमान से परे!! ऋतु मिश्रा पांडे "मौसम ©Ritu mishra pandey mausam #chaand#universe #truelove #spirituallove