**चंचल होना मन की प्रवृत्ति है मन फिर भी तू ज़रा धीर धर भटकाया मत कर मुझे मेरे लक्ष्य से मेरी जरूरत की नींव बन, ज़रा धीर धर मेरे पाँव तेरी तरह वेग नहीं ले सकते तू अपनी रफ़्तार कम कर ज़रा धीर धर तेरे मन का कर सकुं मैं हर बार ये मुमकिन तो नहीं पर कोशिश तो रहेगी मेरी सदा ज़रा धीर धर ए मन ! तुझमें मेरे प्यार का मंदिर भी है उसे अनवेग से सम्हाले रखना ज़रा धीर धर तू है मेरा अंतःकरण तुमसे मिलना है कभी ज़रा धीर धर दिल तो बस तेरा दर्पण है उसमें हर पल तेरे रहने का एहसास सा लगता है मैनें हर बार टूटने से सम्हाला है तुमको हरबार सम्हालेंगे ज़रा धीर धर तू रहेगा हर जन्म में मेरा प्राब्द्ध बनकर हर जन्म का हमदोनों का साथ ज़रा धीर धर**..!!NAJ📝