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बिना तुम्हारे सुबह अवध की रात सरीखी लगती है बिना

बिना तुम्हारे सुबह अवध की रात सरीखी लगती है 
बिना तुम्हारे पूरी दिल्ली फीकी - फीकी लगती है । 

बिना तुम्हारे चौक - चाँदनी में पग सूने लगते हैं 
बिना तुम्हारे गम के बदल छाती छूने लगते हैं । 

बिना तुम्हारे हम ने छत पे आना - जाना छोड़ दिया 
तेरे छत पे तकने का हर एक बहाना छोड़ दिया 
बच्चे कहते हैं चाचू क्यूँ पतंग उड़ाना छोड़ दिया ! 

बिना तुम्हारे नाविक काका ने बातें दोहरायी हैं 
जब भी जाता हूं कहते हैं बिटिया क्यूँ नहीं आयी है !                      

बिना तुम्हारे ये बारिश की बूंदे हाथ जलाती हैं 
और तुम्हारा नाम बुलाकर भाभी मुझे चिढ़ाती हैं ।

 बिना तुम्हारे ख्वाब का सूरज चंदा होना भूल गया 
बिना तुम्हारे आज सुबह मैं ज़िंदा होना भूल गया ।

 बिना तुम्हारे अबकी फागुन गाल गुलाबी नहीं हुआ 
बिना तुम्हारे अपना लहज़ा कभी नवाबी नहीं हुआ । 

अभी कई वादे बाकी थे उन वादों को तोड़ो भी 
बिना तुम्हारे कितने शिकवे . . . खैर हटाओ छोड़ो भी । बिना तुम्हारे
बिना तुम्हारे सुबह अवध की रात सरीखी लगती है 
बिना तुम्हारे पूरी दिल्ली फीकी - फीकी लगती है । 

बिना तुम्हारे चौक - चाँदनी में पग सूने लगते हैं 
बिना तुम्हारे गम के बदल छाती छूने लगते हैं । 

बिना तुम्हारे हम ने छत पे आना - जाना छोड़ दिया 
तेरे छत पे तकने का हर एक बहाना छोड़ दिया 
बच्चे कहते हैं चाचू क्यूँ पतंग उड़ाना छोड़ दिया ! 

बिना तुम्हारे नाविक काका ने बातें दोहरायी हैं 
जब भी जाता हूं कहते हैं बिटिया क्यूँ नहीं आयी है !                      

बिना तुम्हारे ये बारिश की बूंदे हाथ जलाती हैं 
और तुम्हारा नाम बुलाकर भाभी मुझे चिढ़ाती हैं ।

 बिना तुम्हारे ख्वाब का सूरज चंदा होना भूल गया 
बिना तुम्हारे आज सुबह मैं ज़िंदा होना भूल गया ।

 बिना तुम्हारे अबकी फागुन गाल गुलाबी नहीं हुआ 
बिना तुम्हारे अपना लहज़ा कभी नवाबी नहीं हुआ । 

अभी कई वादे बाकी थे उन वादों को तोड़ो भी 
बिना तुम्हारे कितने शिकवे . . . खैर हटाओ छोड़ो भी । बिना तुम्हारे

बिना तुम्हारे