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"माॅ" अपनत्व प्रेम का माॅ प्रतीक, धरती को स्वर्ग ब

"माॅ"
अपनत्व प्रेम का माॅ प्रतीक,
धरती को स्वर्ग बनाती है।
स्निग्ध प्रेम के बादल से,
प्रतिक्षण हमको नहलाती है।

माॅ सुदूर रहकर भी हमसे,
अनुभूति कष्ट का पाती है।
अपने स्पंदन में संतति,
स्पंदन सुन पाती है।

सर्वस्व न्यौछावर निज जीवन को,
अव्यक्त दर्द सह जाती है।
अस्थिमज्जा व रुधिरकणों से,
जीवन नया बनाती है।

बीज कणों से गर्भ में अपने,
धारण धर्म निभाती है।
प्रसव वेदना सहकर भी वह,
देख हमें हर्षाती है।

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय
कर्वी, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)
Mob-7982433545
"माॅ"
अपनत्व प्रेम का माॅ प्रतीक,
धरती को स्वर्ग बनाती है।
स्निग्ध प्रेम के बादल से,
प्रतिक्षण हमको नहलाती है।

माॅ सुदूर रहकर भी हमसे,
अनुभूति कष्ट का पाती है।
अपने स्पंदन में संतति,
स्पंदन सुन पाती है।

सर्वस्व न्यौछावर निज जीवन को,
अव्यक्त दर्द सह जाती है।
अस्थिमज्जा व रुधिरकणों से,
जीवन नया बनाती है।

बीज कणों से गर्भ में अपने,
धारण धर्म निभाती है।
प्रसव वेदना सहकर भी वह,
देख हमें हर्षाती है।

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय
कर्वी, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)
Mob-7982433545