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दो शब्द चुराकर लाया में ज़माने भर की बुराई के लिए

दो शब्द चुराकर लाया में ज़माने 
भर की बुराई के लिए, अपने 
गिरेबां पर ना  झांका कभी नज़र 
रही ज़माने के गिरेबां पर 
दो शब्द चुराकर लाया में ज़माने 
भर की बुराई के लिए 
दिखता क्यूँ नहीं मुझको झोल 
अपने, काले मन का ,जिसमें 
समाया है,ईर्ष्या भाव,और
 कुटिलता,अंधकार सा, दो शब्द 
चुराकर लाया में, ज़माने भर की 
बुराई के लिए, अपना किया मुझ 
को सब लागे, ज़माने का कछु
नहीं, अपनी पीड़ा,सबसे गहरी 
दूजे की पीड़ा मन को, ना समाय
ऐसा मेरा मन पगला ,दूसरे की 
खिल्ली देत उड़ाये,अपने गिरेबां पर 
ना झांका कभी,दूसरे के गिरेबां 
पर मैल बताये,दो शब्द चुराकर 
लाया में ज़माने भर की  बुराई के 
लिए,अपनी गलती क्यूँ नस्वीकार 
करूँ में, मेरे मन का "में "(अहंकार)
सबसे बड़ा है,बाकी सब तुच्छ दिखते 
मुझ सा ज्ञानी कोन यहां है,बात 
मुझे ये कभी ना भाये, भला कोन
है, जो मुझे मेरे गिरेबां पे मैल दिखाए 
दो शब्द चुराकर लाया में ज़माने भर 
कि बुराई के लिए, खुद के गिरेबां पर 
ना झांका कभी, दूसरे के गिरेबां पर 
मैल दिखाए

©पथिक
  #ज़माने की बुराई

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