मैंने लफ़्ज़ों को आग बनाया सोयी मानवता को जगाया बंटवारा जो हुआ देश का... मज़हब की दीवार खड़ा कर गया भाई-भाई को दुश्मन बना गया स्त्री की अस्मिता को चीर-चीर कर गया दुधमूहों को अनाथ कर गया...! बंटवारा जो हुआ देश का... सर्प का दंश दे गया एक ही रात में.. घर से बेघर बना गया अपने ही देश में शरणार्थी बना गया...! बंटवारा जो हुआ देश का मानव-मूल्यों की बलि चढ़ा गया मानवता को शर्मसार कर गया मानव के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा गया मेरे लफ्ज़ों में आग भर गया.... बंटवारा जो हुआ देश का... आज पंजाबी की 20वीं सदी की महान लेखिका अमृता प्रीतम की 100वीं जयंती है। भारत विभाजन की त्रासदी को शायद ही इतने जीवंत अंदाज़ में किसी और लेखक ने उकेरा हो। उनकी कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास एवं निबंध एक आज़ाद ख़याल औरत की दास्तान हैं। दुःख स्थायी तो है लेकिन उस दुःख के कारणों की पड़ताल उनका प्रमुख विषय रहा। उन्होंने अल्फ़ाज़ को आग बनाने का काम किया जिसकी ज्वाला में मानव की तमाम पीड़ा स्वाहा हो जाये। #लफ़्ज़कोआगबनाया #अमृताप्रीतम #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi