हारना नहीं हार माननी आती ही नही, अपने बाप से ज्यादा ज़िद्दी, हार का पाठ कभी पढ़ा नहीं, हार का साथ कभी दिया नहीं, हार का हार बनाकर मुश्किलों को पहनाया जरूर, झुकने पर किया मजबूर परेशानियां भी बोली जी हजूर, माफ करे हमे और हमारी क्रूरता को, हमें अपनी हार कबूल, कोटी कोटी प्रणाम तेरी इच्छाशक्ति को, तुझ जैसा कभी देखा नहीं, खुदा भी हैरान और प्रसन्न, देखकर मेरी क्षमता, लगा बुनने नए इंतिहान, बनाए नए हथियार, मेरे कर्मो को निचोड़ बनाए और खड़े किए पहाड़, भटक जाऊं या बहक जाऊं तो दिए नकली सुख, अरे ओ मनुष्य, कहीं तो आकर रुक, आखिर मुझे बताना ही पढ़ा इस अडिगता का सार, कठोर तप मेरा आहार, सच की ढाल, कला मेरी मशाल और तलवार, जुनून सर पर सवार, हर पल करू तूझे याद, खुद की खोज में जो निकला, किया जिसने खुद को हर परिस्थिती को समझा तेरा आशीर्वाद, निडरता से किया अपने अच्छे व दुष्कर्मों का प्रचार, जिसकी कला का जुड़ा हो तुझसे तार, किया जिसने दर्द को जीवन साथी की भाती स्वीकार, भला इस रास्ते पर चल पढ़ी इस रूह का, कैसे करे कोई बहिष्कार, कैसे रोक पाए ईसे कोई समाज या श्राप, जिसके सर पर हो तेरा हाथ ©Akhil Kael #riseofphoenix #stormofphoenix #truth #notafraid #PoetInYou